सुखी डाली पर हरी बेल की तरह छा जाओ
सवर जाएगी ज़िन्दगी इक बार गर आ जाओ
ना होगी ख्वाहिश कभी अमृत की मुझे
दो घूट आँखों से अगर पिला जाओ
पिघल जाएगी मेरी रूह तेरी आगोश में
गर्म बाँहों के दायरे में इक बार समां जाओ
सख्त जान हु ऐसे न टूटेगा हौसला मेरा
दो - चार ख्वाब नज़रो को और दिखा जाओ
लड़ सकता हु तेरी खातिर सारी दुनिया से भी मै
इक बार जो कहती तुम हद से गुज़र जाओ
'विवेक 'से इस जनम में बिछड़ना ही है अगर.
फिरर तन्हा जीने की एक वज़ह तो बतला जाओ ...
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Thursday, December 23, 2010
Sunday, December 5, 2010
ज़िन्दगी
न वक्त रुकता है न मौजे ठहर जाती है
ज़िन्दगी रेत है हांथो से फिसल जाती है …
जुदाई का सबब सोच कर, रोता था अक्सर दिल
नए पत्तो की चाह में तो, शज़र भी सूखे गिरती है
मुकम्मल जहां की आस में, भटकता हु दर-ब-दर.
मेरी खोज न जाने क्यों,तुझपे आ कर रुक जाती है..
ज़ख्म, दर्द और आंसू ये सब बात है फिजूल
वक्त की मरहम हर ज़ख्म को भर जाती है
तुम जो कहती थी” किसी बात को गहराई से न सोचो विवेक”
जब सोचता हु जब गहराई से तब वो बात समझ में आती है
न आलम-ए-वस्ल, न मौसम-ए -हिज्र की जरुरत है हमें
की तेरे ज़िक्र भर से ही मेरी कलम चल जाती है…
जाने नहीं देंगे....vivek
ठान लिया है इस दील में किसी को आने नहीं देंगे
फिर से वो इश्क की खुमारी छाने नहीं देंगे ..
पहुचती है तकलीफ हमें किस चीज़ से
इसका पता किसी को लगाने नहीं देंगे..
ना हो मुश्किल कभी दूर जाना…
इतना करीब किसी को आने नहीं देंगे …
हम रोये इतना के आँखे हो जाये सुर्ख..
न बन जाये किसी का गम क़सक मेरी…
अपने राज़ किसी को बताने नहीं देंगे
तोडना ही हो जिसकी फितरत में शामिल
ऐसे हाथो में दिल के पैमाने नहीं देंगे
वक्त की धार पे बदल जाए जो लोग...
ऐसे कमज़ोर रिश्ते किसी को बनाने नहीं देंगे..
लगा दे जो आग मेरे ही जीवन में,
उम्मीद के दिए किसी को जलने नहीं देंगे
जो लुट ले मेरा सब कुछ, मदहोश जान के..
नजरो से इतना किसी को पिलाने नहीं देंगे…
आ जाये फिर भी, तो मर्ज़ी खुदा की.. विवेक
है यकीन इस बार उसे हम जाने नहीं देंगे....
Wednesday, December 1, 2010
Koshish.......
तुझे भुलाने की कोशिश यूँ किये जा रहे है..
जैसे किश्तों में ज़हर का घूट पिए जा रहे है ...
कौन रखेगा मेरे बाद ख्याल , तेरी यादों का..
यही सोच के बे-सबब जिए जा रहे है....
था मेरा भी इश्क पाक इस ज़माने में, शायद..
उसी खता के इलज़ाम अब तक मुझे दिए जा रहे है ...
कहीं बदनाम न कर दे तुझे हाल-ए-दील मेरा..
ज़माने के हर सवाल पे लबो को सिये जा रहे है...
हासिल नहीं है हर किसी को , ये इश्क चीज़ है ऐसी ..
बस यही दिलासा अपने दील को दिए जा रहे है...
जैसे किश्तों में ज़हर का घूट पिए जा रहे है ...
कौन रखेगा मेरे बाद ख्याल , तेरी यादों का..
यही सोच के बे-सबब जिए जा रहे है....
था मेरा भी इश्क पाक इस ज़माने में, शायद..
उसी खता के इलज़ाम अब तक मुझे दिए जा रहे है ...
कहीं बदनाम न कर दे तुझे हाल-ए-दील मेरा..
ज़माने के हर सवाल पे लबो को सिये जा रहे है...
हासिल नहीं है हर किसी को , ये इश्क चीज़ है ऐसी ..
बस यही दिलासा अपने दील को दिए जा रहे है...
जैसे किश्तों में ज़हर का घूट पिए जा रहे है ...
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