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Monday, September 17, 2012

मैं और मेरी तन्हाई .....

आंसुओ से भीगा दामन , फिर से तेरी याद आई।
तेरी बातें करते है जब मैं और मेरी तन्हाई .....

जी करता है आग लगा दू इस बेदर्द ज़माने को,
करते है मजबूर मुझे जो तेरा प्यार भूलाने को।
जी करता है तुझे छीन लूं प्यार की रस्म निभाने को।

पर इस बात से थम जाते है, ना हो जाए तेरी रुसवाई।
तेरी बातें करते है जब, मैं और मेरी तन्हाई .....


तुझसे बिछड़ के मैं जी लूँगा , ये कहना एक धोखा था।
तेरी खुशियों की ही खातीर , बढ़ते क़दमों को रोका था।
तन्हाई के इस जंगल में, खुद ही खुद को झोंका था।

तुझसे कैसा शिकवा 'जाना', गर दूरी मुझको रास न आई।।।
अक्सर बातें करते है हम, मैं और मेरी तन्हाई ....


तेरा ही इक चेहरा था जो मुझको हरदम याद रहा 
तेरी ही अनमोल यादों से बाग़-ए-दिल आबाद रहा।
तेरी बस इक दीद की खातीर मेरा दिल आबाद रहा।

बस तेरी ही यादें थी जो, मुझको हरदम है भाई।
अक्सर ज़िक्र तेरा करते हैं , मैं और मेरी तन्हाई ......

मैं और मेरी तन्हाई।।।।

Vivek Hariharno

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