अमावस की काली घनी रात में,
उजाले की इक लौ नज़र आई है।
चल ऐ दिल वहां चलते है
जहाँ ग़म की बदली नहीं छाई है ।
ना आंसू से बोझल हो रातें जहाँ पर
दिल दुखाये ना लोगों की बातें जहाँ पर
पल में टूटे न चाहत के वादें जहाँ पर
जहाँ बजती खुशियों की शहनाई है..
चल ऐ दिल वहां चलते है
जहाँ ग़म की बदली नहीं छाई है ।
तेरी बातों में सदियाँ बिताये जहाँ पर..
तेरे कांधे को तकिया बनाये जहाँ पर
तेरी आँखों में दुनिया बसाये जहाँ पर
जहाँ वस्ल, तू और तन्हाई है ।।
चल ऐ दिल वहां चलते है
जहाँ ग़म की बदली नहीं छाई है ।
बहते अश्कों को पीना हो आसां जहाँ पर
रोज़ घुट-घुट के जीना हो आसां जहाँ पर
और ज़ख्मों को सीना हो आसां जहाँ पर
जहाँ दिल के रिश्तों की सुनवाई है..
चल ऐ दिल वहां चलते है
जहाँ ग़म की बदली नहीं छाई है ।
--विवेक