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Friday, October 30, 2015

तन्हाई

कभी मैं सोचता हूँ तुमको बतलाऊ मेरे जानम
की कैसा होता है अक्सर मेरी तन्हाई का आलम

सुनो मैं तुमको बतलाता हूँ जो अक्सर नहीं कहता
मेरी तन्हाई में तेरे सिवा कोई नहीं रहता
तू है मेरी रगों में, इन रगों में ख़ूँ नहीं बहता
मैं दिल की कह रहा हूँ बे-सबब कुछ भी नहीं कहता

जो मेरे साथ है गुज़री, कई बातें छिपाता हूँ
न दुःख पहुंचे तुझे ये सोच, लिखी बातें मिटाता हूँ
जो तूने मुझसे करवाये सभी वादे निभाता हूँ
तेरी धुन में रहूँ तो सारी बातें भूल जाता हूँ

मेरे सब दोस्त तेरे नाम से मुझको चिढ़ाते हैं
मुझसे कुछ हो करवाना तेरी कसमें खिलाते है
वो मुझको तुझसे मिलने के कभी सपने दिखाते है
कभी यूँ बे वजह ही तेरे कारण छेड़ जाते हैं

मेरी तन्हाई के साथी है तेरे प्यार की बातें
जो तन्हा हमने काटी है रहे आग़ोश में रातें
मेरे शब् और सुबह तेरे तराने है सदा गाते
मगर दिल का ये सूनापन मुझे है काटते जाते

मेरा सूरज निकलता है विसाल-ए-यार की खातिर
शब्-ए-तन्हाई कटती है तेरे इंतज़ार की खातिर
मैं ये जो सांसे लेता हूँ तेरे ही प्यार की खातिर
खुदीको रोक रखा है, रस्मे दिवार की खातिर

ये तेरा प्यार है जो मुझको दुआ जीने की देता है
गलत राहो में गर जाऊँ तो मुझको रोक लेता है

विवेक