जैसे किश्तों में ज़हर का घूट पिए जा रहे है ...
कौन रखेगा मेरे बाद ख्याल , तेरी यादों का..
यही सोच के बे-सबब जिए जा रहे है....
था मेरा भी इश्क पाक इस ज़माने में, शायद..
उसी खता के इलज़ाम अब तक मुझे दिए जा रहे है ...
कहीं बदनाम न कर दे तुझे हाल-ए-दील मेरा..
ज़माने के हर सवाल पे लबो को सिये जा रहे है...
हासिल नहीं है हर किसी को , ये इश्क चीज़ है ऐसी ..
बस यही दिलासा अपने दील को दिए जा रहे है...
जैसे किश्तों में ज़हर का घूट पिए जा रहे है ...
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