तू मेरी ख्वाहिश से मेरा जूनून बन गया है
दर्द कुछ इतना बढ़ा के सुकून बन गया है
नहीं होता अब तो जिनके बगैर गुज़ारा
ये आंसू रगों में बहता खून बन गया है
चले भी आओ के प्यासी है दिल की ज़मी कब से
ये सर्द राते मानो झुलसता जून बन गया है...
मिली है सजा की तेरी यादो में गुज़ारे तमाम उम्र
की तू खुदा है या कोई कानून बन गया है ...
तेरी इसी अदा के है कायल न जाने कितने लोग
क़त्ल तुने किया और अब मासूम बन गया है...
दर्द कुछ इतना बढ़ा के अब सुकून बन गया है .........
---- विवेक
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