सुखी डाली पर हरी बेल की तरह छा जाओ
सवर जाएगी ज़िन्दगी इक बार गर आ जाओ
ना होगी ख्वाहिश कभी अमृत की मुझे
दो घूट आँखों से अगर पिला जाओ
पिघल जाएगी मेरी रूह तेरी आगोश में
गर्म बाँहों के दायरे में इक बार समां जाओ
सख्त जान हु ऐसे न टूटेगा हौसला मेरा
दो - चार ख्वाब नज़रो को और दिखा जाओ
लड़ सकता हु तेरी खातिर सारी दुनिया से भी मै
इक बार जो कहती तुम हद से गुज़र जाओ
'विवेक 'से इस जनम में बिछड़ना ही है अगर.
फिरर तन्हा जीने की एक वज़ह तो बतला जाओ ...
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