खुद ही खुद की ख्वाहिशों से अनजान हु मैं !
बे-सबब जी रहा हूँ , जैसे दो पल का मेहमान हु मैं !!
कभी जो सोंचू तुझे तो बरसूँ बारिशो की तरह !
कभी हो जाऊ खफा, तो इक तूफ़ान हूँ मैं !!
तेरे करीब रहूँ तो मासूम हूँ दरीया की तरह !
बिना तेरे मानो समंदर की उफ़ान हूँ मैं !!
जो चाहूँ मुह फेर लूं इक पल मे इस ज़माने से !
पर तेरी खातिर पत्थर पे एक निशान हूँ मैं !!
सारे शहर के लिए आबाद हूँ महफ़िल की तरह !
दिल में ना झाँक लेना, बंजर हूँ ,वीरान हूँ मैं !!
लाख चाहू तुझे खोने की खलिश जाती ही नहीं !
क्या करू ऐ हमदम, आखिर इंसान हूँ मैं !!
-- विवेक
बे-सबब जी रहा हूँ , जैसे दो पल का मेहमान हु मैं !!
कभी जो सोंचू तुझे तो बरसूँ बारिशो की तरह !
कभी हो जाऊ खफा, तो इक तूफ़ान हूँ मैं !!
तेरे करीब रहूँ तो मासूम हूँ दरीया की तरह !
बिना तेरे मानो समंदर की उफ़ान हूँ मैं !!
जो चाहूँ मुह फेर लूं इक पल मे इस ज़माने से !
पर तेरी खातिर पत्थर पे एक निशान हूँ मैं !!
सारे शहर के लिए आबाद हूँ महफ़िल की तरह !
दिल में ना झाँक लेना, बंजर हूँ ,वीरान हूँ मैं !!
लाख चाहू तुझे खोने की खलिश जाती ही नहीं !
क्या करू ऐ हमदम, आखिर इंसान हूँ मैं !!
-- विवेक
No comments:
Post a Comment