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Monday, February 4, 2013

अनजान हु मैं !

खुद ही खुद की ख्वाहिशों से अनजान हु मैं !
बे-सबब जी रहा हूँ , जैसे दो पल का मेहमान हु मैं !!

कभी जो सोंचू तुझे तो बरसूँ बारिशो की तरह !
कभी हो जाऊ खफा, तो इक तूफ़ान हूँ मैं !!

तेरे करीब रहूँ तो मासूम हूँ दरीया की तरह !
बिना तेरे मानो समंदर की उफ़ान हूँ मैं !!

जो चाहूँ मुह फेर लूं इक पल मे इस ज़माने से !
पर तेरी खातिर पत्थर पे एक निशान  हूँ मैं !!

सारे शहर के लिए आबाद हूँ महफ़िल की तरह !
दिल में ना झाँक लेना, बंजर हूँ ,वीरान हूँ मैं !!

लाख चाहू तुझे खोने की खलिश जाती ही नहीं !
क्या करू ऐ हमदम, आखिर इंसान हूँ मैं !!
-- विवेक




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