हर घडी दिल में वफ़ा की, इक शमा जलती रही,
आरजू मिलने की तुझसे, दिन-ब-दिन पलती रही।
बस तड़पते हम रहे, हर रोज़ तेरी याद में,
उम्र भी गुजरी यू ही, और शाम भी ढलती रही।
यू तो था सारा जहाँ, मेरी नज़र के सामने,
एक तू ही ना दिखा, ये बात बस खलती रही।
महफिलों में नज़्म थी, साकी भी था और जाम भी,
फिर भी तेरे हुस्न की ही, बात बस चलती रही।
ज़र्रा होके की तमन्ना, मैंने पाने की चाँद को,
था बड़ा नादान मैं या, ये मेरी गलती रही।
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